कासिद सामान्यत: पैदल चलते थे। इसके अलावा घुड़सवार व ऊंट सवार भी होते थे जो माल (तत्कालिक पार्सल) व पत्र लेकर जाते थे। होलकर राज में शुरुआत से ही बामनिया डाक व्यवस्था थी। इस कार्य को जयपुर के ब्राह्मणों द्वारा संचालित किया जाता था। दो तोला या उससे कम के वजन के पत्रों को ले जाने के लिए इन्हें पारिश्रमिक आधा आना दिया जाता था। शासकीय डाक वितरण में विलंब होने पर डाकिए पर पांच रुपये प्रतिदिन की दर से दंड किया जाता था, हालांकि यह व्यवस्था सामान्य डाक पर लागू नहीं थी।
1873 में हुई डाक विभाग की स्थापना
1873 में होलकर डाक विभाग की स्थापना की गई। ब्रिटिश डाक विभाग के अनुभवी दामोदर पिल्लै गंगाप्रसाद ने इस व्यवस्था को आकार दिया। महाराज तुकोजीराव द्वितीय के कार्यकाल में 1885 में होलकर राज्य का पहला डाक टिकट जारी हुआ। इसका मूल्य आधा आना था और इस पर महाराज का चित्र अंकित था।
इंदौर शहर में पहली बार होलकर शासनकाल में दूर संचार की क्रांति नंदलालपुरा में तारघर के शुरू होने के बाद हुई थी।
1860 में इंदौर में तारघर स्थापित किया गया था। नंदलालपुरा में जब नया तार आफिस बनाया जा रहा था, तब टेलीग्राफ लाइन के तारों के कारण ताजिए के जुलूस व दशहरे के अवसर व अन्य समारोह में निकलने वाले हाथियों के कारवे के लिए परेशानी उत्पन्न होने लगी। उसके बाद प्रमुख मार्गों में काफी ऊंचाई पर तार डाले गए।
(इतिहासकार शर्वाणी से मिली जानकारी के अनुसार)