शंकरगढ़ के अमित सिंह की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई इलाहाबाद में नैनी स्थित केंद्रीय विद्यालय से हुई है। 12वीं पास करने के बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड ऑफ दि ईस्ट (Oxford of the East) कहलाए जाने वाले इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (Allahabad University) में बीएससी में दाखिला ले लिया। लेकिन उन्हें विश्वविद्यालय की राजनीति का ऐसा चस्का लगा कि तीन साल तक परीक्षा में बैठे ही नहीं। इसके बाद उनके ऊपर कॉलेज ड्रॉपआउट का टैग चिपक गया। लेकिन इसके बाद उन्होंने जो किया, वह सक्सेस स्टोरी बन गई। आइए जानते हैं अमित सिंह के बारे में...शंकरगढ़ के निवासी, नैनी में शिक्षा
अमित सिंह का परिवार मूल रूप से इलाहाबाद के पास शंकरगढ़ का निवासी है। इनके बाबूजी इलाहाबाद के नैनी स्थित भारत सरकार की कंपनी इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज या आईटीआई (ITI Limited) में नौकरी करते थे। इसलिए इनकी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद में ही हुई। बचपन में आईटीआई नैनी के केंद्रीय विद्यालय में दाखिला करवा दिया गया। वहीं से 10वीं और 12वीं करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्विवद्यालय में बीएससी कोर्स के लिए इंटरेंस एक्जाम दे दिया। वह क्लियर हो गया तो वहीं एडमिशन ले लिया। जैसा कि आमतौर पर पूरबिया लोगों में होता है, स्कूल से निकल कर कॉलेज या यूनिवर्सिटी आते ही युवकों को मस्ती सूझती है। ऐसा ही अमित के साथ ही हुआ। उन्हें छात्र राजनीति में खूब मजा आने लगा।
तीन साल तक परीक्षा में ही नहीं बैठे
कहते हैं कि सियासी राजनीति हो या छात्र राजनीति, जब उसमें मन रमने लगता है तो जमाने का कुछ ध्यान ही नहीं रहता। ऐसा ही कुछ अमित के साथ भी हुआ। उन्होंने दाखिला तो बीएससी कोर्स के लिए हुआ था। लेकिन उनका मन न तो क्लासरूम में लगता था ना ही लेबोरेटरी में। मन रमता था तो बस स्टुडेंट्स के साथ बैठकी में। इसी चक्कर में तीन साल तक वह परीक्षा में ही नहीं बैठे। घर में बाबूजी को लगता था कि बेटा पढ़ रहा है। लेकिन बेटा तो कुछ और ही कर रहा है। संयोग से उसी साल उत्तर प्रदेश में यूपीसीईटी का आयोजन हुआ तो उसी परीक्षा में वह बैठ गए। इस परीक्षा के बाद उनका दाखिला गाजियाबाद के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया।
पहली नौकरी मिली 8500 रुपये की
साल 2003 में वह बी. टेक पास कर गए। इसके बाद उनकी नौकरी रिलायंस इंफोकॉम (Reliance Infocom) में नेटवर्क इंजीनियर के रूप में लग गई। वेतन था साढ़े आठ हजार रुपये। उस समय वह कुछ मस्ती करना चाहते थे, लेकिन उनके बाबूजी को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने बी. टेक करते ही चट मंगनी पट ब्याह करा दिया। जल्दी शादी हुई तो जल्दी बेटा भी हो गया। लेकिन इस समय तो उनका स्ट्रगल फेज चल रहा था। रिलायंस इंफोकॉम की नौकरी में रास नहीं आया तो उसे छोड़ कर बेंगलोर चले गए। वहां उन्होंने आईटीआई (ITI Limited) में इंजीनियर की नौकरी कर ली। वेतन था 10 हजार रुपये। एक तो वेतन कम, ऊपर से बीवी-बच्चा। बड़ी मुश्किल से गुजारा होता था।
नोकिया सीमेंस की नौकरी और पूरी रात नहीं आई
इसी बीच वह नौकरी के लिए इंटरव्यू देते रहे। संयोग से कुछ ही महीने बाद उन्हें नोकिया सीमेंस (Nokia Seimens Networks) में नौकरी मिल गई। वेतन था 60,000 रुपये हर महीने। कहां 10 हजार रुपये की नौकरी और कहां 60 हजार रुपये महीने का ऑफर। वह बताते हैं कि जब उन्हें सीमेंस का अपॉइन्टमेंट लेटर मिला तो पूरी रात नींद नहीं आई। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। उन्होंने आज तक सीमेंस की सैलेरी स्लिप संभाल कर रखी है। इसके बाद तो उन्होंने फिर मुड़ कर नहीं देखा। इसके बाद उन्होंने सुबेक्स कंपनी (Subex Limited) को ज्वॉइन किया। इसने उन्हें कनाडा भेज दिया। वहां साल भर गुजारने के बाद भारत लौटे और ओरेकल (Oracle) ज्वॉइन कर लिया। वहां वह 2014 तक रहे।
2015 में बनाया पहला वेंचर
अमित सिंह ने साल 2015 के शुरुआत में अपना पहला वेंचर बनाया। इसका नाम था Yitsol.यहां सबकुछ ठीक नहीं चला। लेकिन सीखने को काफी कुछ मिला। इसके बाद उन्होंने अक्टूबर 2020 में टेलियोईवी (TelioEV) की स्थापना की। यह इलेक्ट्रिक व्हीकल के सेक्टर में काम करती है। इसके बाद उन्होंने इसी साल अक्टूबर में टेलियोलैब (Teliolabs) की स्थापना की। इसका मुख्यालय तेलंगाना के हैदराबाद में है। इसकी शाखा अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और हंगरी में भी है। इस समय इनकी कंपनी में 200 से भी ज्यादा इंजीनियर काम करते हैं। कंपनी का रेवेन्यू लगातार बढ़ रहा है।