एम्सटरडैम: नीदरलैंड में धुर दक्षिणपंथी नेता गीर्ट विल्डर्स अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं। एग्जिट पोल में उनकी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिलने का दावा किया गया है। पोलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार एग्जिट पोल में गीर्ट विल्डर्स की फ्रीडम पार्टी (पीवीवी) संसद की 150 सीटों में से 35 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर रही है। ये बीते चुनाव में हासिल की गई पीवीवी की सीटों की संख्या से दोगुनी से भी ज्यादा है। पोल में पीवीवी के बाद फ्रैंस टिम्मरमन्स के नेतृत्व वाले लेबर-ग्रीन गठबंधन के 25 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रहने की भविष्यवाणी की गई है।
पोलिटिको की रिपोर्ट में कहा गया है कि नीदरलैंड के मौजूदा पीएम मार्क रुटे की 2010 से अब तक लगातार चार मध्यमार्गी विचारधारा वाली सरकारों के बाद दक्षिणपंथी गीर्ट की जीत नीदरलैंड की राजनीति में दिशा में एक नाटकीय बदलाव लाएगी। गीर्ट 35 सीटें जीतने में कामयाब हुए तो पीएम पद के सबसे बड़े दावेदार होंगे। हालांकि वह अकेले दम पर सरकार नहीं बना सकेंगे। उनको दूसरे दलों के समर्थन की जरूरत होगी। गीर्ट की विवादास्पद छवि को देखते हुए ये भी सवाल है कि क्या दूसरे दल उनसे गठबंधन करके सरकार में शामिल होने के लिए राजी होंगे। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद गीर्ट को संसद में बहुमत साबित करने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।
यूरोपीय राजनीति पर पड़ेगा असर
इस्लाम विरोधी बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले गीर्ट अगर चुनाव जीतते हैं तो ये दूसरे विश्व युद्ध के बाद से डच राजनीति में सबसे बड़े राजनीतिक उलटफेरों में से एक होगा। ये परिणाम यूरोप की राजनीति पर भी अपने असर डालेगा। पोलिटिको की रिपोर्ट कहती है कि इस्लाम विरोधी गीर्ट की जीत नीदरलैंड की राजनीति में एक ऐसा बदलाव होगा, जो यूरोपीय राजनीति को हिलाकर रख देगा।
गीर्ट विल्डर्स नीदरलैंड में विपक्षी नेता के तौर पर बीते कुछ सालों में लगातार इस्लाम विरोधी बयानबाजी करते रहे हैं। इस्लाम और मुस्लिमों का विरोध गीर्ट और उनकी पार्टी पीवीवी के राजनीतिक अभियान का हिस्सा रही है। पार्टी नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान कई विवादास्पद वादे किए हैं। इनमें सार्वजनिक स्थानों पर इस्लामिक हेडस्कार्फ पहनने को गैरकानूनी घोषित करने, मस्जिदों को बंद करने और कुरान पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव भी शामिल है। गीर्ट की की छवि की वजह से ही सबसे अधिक सीटें जीतने के बाद भी राजनीतिक विश्लेषकों को इस पर संदेह है कि उनका नाम प्रधानमंत्री के लिए आगे आने पर दूसरे दल समर्थन के लिए आगे आएंगे।