नई दिल्ली: लापरवाह कर्मचारियों की वजह से एक बार फिर से रेलवे (Indian Railways) की भद पिटी है। दिल्ली के कंज्यूमर कोर्ट ने रेलवे को सेवा में कमी का दोषी पाया है। मामला कैंसिल्ड वेटलिस्टेड टिकट (Cancelled Ticket) का पैसा नहीं लौटाने का है। पीड़ित ग्राहक ने उपभोक्ता फोरम (Consumer Forum) का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने टिकट का पैसा सात फीसदी का ब्याज के साथ एक महीने में लौटाने में आदेश दिया है। साथ ही कोर्ट के खर्चे के लिए रेलवे को 25 हजार रुपये का जुर्माना भी भरने को कहा है।
क्या है मामला
यह मामला दिल्ली के रहने वाले संदीप कुमार मिश्रा का है। उन्होंने आईआरसीटीसी (IRCTC) की टिकटिंग वेबसाइट से 17 अक्टूबर 1012 को छह यात्रियों के लिए एक वेटलिस्टेड जर्नी टिकट (Waiting List Ticket) खरीदा। यह टिकट 19 अक्टूबर 2012 की यात्रा के लिए कोचेगुडा से गोरखपुर के लिए बुक था। जब चार्ट बना तो तीन यात्री का टिकट कंफर्म हो गया, तीन का नाम वेटिंग लिस्ट में रह गया। तीनों वेटलिस्टेड पैसेंजर्स ने यात्रा नहीं किया और आईआरसीटीसी की साइट पर रिफंड के लिए टीडीआर दाखिल कर दिया।
रेलवे की तरफ से नहीं मिला रिफंड
रेलवे के नियमों के मुताबिक और सामान्य प्रक्रिया में टीडीआर रिफंड 90 दिनों में आ जाना चाहिए। लेकिन संदीप को यह नहीं मिला। इसके बाद पीड़ित ने आईआरसीटीसी को मेल किया, तब भी रिफंड नहीं मिला। करीब एक साल बाद, पांच सितंबर 2013 को पीड़ित ने रेलवे को लीगल नोटिस भेजा पर इसका कोई असर नहीं दिखा। इसके बाद उन्होंने हार कर कंज्यूमर फोरम का दरवाजा खटखटाया।
क्या कहा कंज्यूमर फोरम ने
यह वाद दिल्ली के District Consumer Disputes Redressal Commission-VI में दायर किया गया था। कार्यवाही के दौरान आईआरसीटीसी ने बताया कि वह केवल रेलवे यात्री आरक्षण प्रणाली (पीआरएस) तक पहुंच प्रदान करता है और रिफंड मामलों में इसकी कोई भूमिका नहीं है। फोरम की अध्यक्ष पूनम चौधरी और सदस्यों बारिक अहमद और शेखर चंद्रा ने मामले पर 04.01.2024 को फैसला सुनाया। कंज्यूमर कोर्ट ने रिफंड वापस करने के लिए दोनों ओपी को संयुक्त रूप से और अलग-अलग उत्तरदायी ठहराया।
यह भी कहा
कंज्यूमर फोरम ने चार सप्ताह के अंदर रेलवे रिफंड देने का निर्देश दिया। यह भी कहा गया कि रिफंड के साथ ही पिछली तारीख से तक भुगतान होने तक 7% प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी दिया जाए। साथ ही यह भी कहा कि चार सप्ताह में इसका कंप्लायेंस नहीं होता है तो पीड़ित को प्रति वर्ष 12% की बढ़ी हुई ब्याज का भुगतान करना होगा। शिकायतकर्ता को अतिरिक्त रूप से मुकदमा खर्च के रूप में 25,000 रुपये देने का भी आदेश दिगा गया है।